Monday, March 30, 2009

सवर्श्रेष्ठ है आत्मबल

तप द्वारा आत्मशोधन करने से विकसित होता है आत्मबल

शरीरबल से साधन

मित्रो! अगर कभी आपको भौतिक साधनों की जरूरत हो और इस बात की इच्छा हो कि हम शरीर से सुख भोग करेंगे, हम संसार की दौलत इकट्ठी करेंगे, तो आप दो काम करना । दो देवताओं के पास जाना, तीसरे के पास मत जाना । क्या करना? शारीरिक बल इकट्ठा करना । शारीरिक बल किसे कहते हैं? देह की ताकत को भी कहते हैं और दिमाग की ताकत को भी कहते हैं । अपने दिमाग को सक्षम बनाना, योग्यता बढ़ाना और मेहनत करना । दिमाग की योग्यता बढ़ाएँगे तो आपके पास साधन आ जाएँगे । ...

बुद्धिबल से सुख-शांति

मित्रो! अगर आपको इस बात की जरूरत हो कि हमारे जीवन में सुख चाहिए, प्रसन्नता चाहिए, मस्ती चाहिए, तो मैं आपसे एक ही बात कहूँगा कि आप विवेकशील बनिए । विवेकशीलता, जिसको हम बुद्धिमत्ता कहते हैं । बुद्धिमत्ता अक्लमंदी को नहीं कहते हैं । अक्लमंदी के ऊपर लानत है । अक्लमंदी हमारे-आप सबके हिस्से में आ गई है । कोई एम.ए. हो गया है, कोई बी.ए. हो गया है, कोई इंजीनियर है, कोई डॉक्टर है । यह क्या है? इसका नाम है अक्लमंदी । कोई पंचायत का मेंबर है, कोई सोसाइटी का मेंबर है । ये कौन हैं? ये हैं अक्लमंद । कोई व्यापारी है, कोई दुकानदार है । ये सब अक्लमंद हैं । अक्ल तो शरीर का हिस्सा है, जो केवल पैसा कमाने के काम आती है । स्वाथर् साधने में काम आती है; और किसी काम में नहीं आती । मैं यह कह रहा था कि बुद्धिमत्ता और विवेकशीलता अगर आपके भीतर हुई, तो आप गई-गुजरी परिस्थितियों में भी अपनी प्रसन्नता कायम रख सकते हैं । परिस्थितियाँ चाहे कैसी क्यों न हों, हर परिस्थिति में आप सुख-शांति, प्रसन्नता कायम रख सकते हैं और बुद्धिमत्ता की कमी हो तो अच्छी से अच्छी परिस्थिति में रोते ही नार आयेंगे ।

आत्मबल से उत्कर्ष

साथियो! आत्मबल सबसे बड़ा बल है । शरीरबल से अक्लबल बड़ा है और अक्लबल से आत्मबल बड़ा है । दुनिया में आत्मबल सबसे बड़ा होता है । आत्मबल के सहारे मामूली आदमी गाँधी बन सकता है । आत्मबल के सहारे मामूली आदमी बुद्ध बन सकता है । अध्यात्मबल के सहारे मामूली आदमी ईसा मसीह बन सकता है । अध्यात्मबल के सहारे मामूली घर में पैदा हुए व्यक्ति जगद्गुरु शंकराचार्य हो सकते हैं । यह सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कुव्वत है । ....

आदमी यही सोचता है कि आत्मबल पाने के लिए, भगवान को पाने के लिए, भगवान की सिद्धियाँ पाने के लिए और आध्यात्मिक विशेषताएँ पाने के लिए हमको क्या करना चाहिए? 'करना' नहीं, बेटे! यह शब्द गलत है । क्या करना चाहिए? यह मत कहिए । करेगा तो शरीर । ... अध्यात्मबल कहाँ से आता है? बेटे! अध्यात्मबल बनने से आता है, ढलने से आता है । आप किस तरह से विचार करते हैं? आपके चिंतन का तरीका क्या है? आपने सोचने का ढंग क्या बना रखा है? आपके विचार करने की शैली क्या है, बताइए । ...अगर आपकी यही इच्छाएँ, निष्ठाएँ, आस्थाएँ, भाव-संवेदनाएँ उच्चस्तरीय होतीं तो मजा आ जाता ।

तो फिर क्या करना चाहिए? नहीं बेटे! क्या करना चाहिए नहीं, क्या बनना चाहिए । बेटे! अपने आप को अपने से काट, अपने आप से लड़ । अपने आप को अपने से पछाड़ । अपने आप अपने से कुश्ती लड़ । यह क्या है? इसका नाम है-तप । तप कहते हैं-अपने भीतर एक अंतर्द्वंद्व खड़ा कर और अपने भीतर जद्दोजहद करने के लिए लड़ाई खड़ी कर । अपनी पिटाई अपने आप कर और अपनी धुलाई अपने आप कर । अपने भीतर-बाहर हर हिस्से में गंदगी भरी पड़ी है । इसको कौन ठीक करेगा? मुहल्ले वाला? मुहल्ले वाला नहीं करेगा । आपके भीतर किसी को घुसने की गुंजाइश नहीं है । आप ही अपने घर में घुसिए और अपने को ठीक कीजिए । जो भीतर नहीं घुस सका, आत्मसंशोधन नहीं कर सका, अपने भीतर अपनी लड़ाई नहीं लड़ सका, अपने विरुद्ध अपने आप बगावत नहीं कर सका और अपने आप को ऊँचा उठाने के लिए अपनी कुव्वत नहीं लगा सका, वह कभी नहीं उठेगा और न कभी आत्मबल प्राप्त कर सकेगा ।

गीताकार ने कहा है-उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥ अर्थात्-हम ही अपने बैरी हैं और हम ही अपने मित्र हैं । हम ही अपना उद्धार कर सकते हैं और हम ही अपने को पतन की राह में धकेल सकते हैं ।

ये सारी की सारी शिक्षाएँ हमने आपको दीं, गायत्री उपासना हमने आपको सिखाई । गायत्री उपासना के साथ में हमने बराबर विचार किया कि-धियो यो नः प्रचोदयात् । अर्थात् आप अपनी बुद्धि और बल को विकसित करें । साधना करें, तपश्चर्या करें, योगाभ्यास करें और अपने भीतर की लड़ाई-जैसे व्यायामशाला में शरीर को मजबूत करते हैं, जैसे स्कूल में जाकर के अपने दिमाग को मजबूत बनाते हैं, उसी तरीके से आप तपश्चर्या की पाठशालाओं में प्रवेश करें और अपने आप को उसमें तपाएँ । तपा करके जिस तरीके से कच्चा लोहा पक्का बना दिया जाता है, उसी तरीके से आप तप करने का अभ्यास करें । कच्चे लोहे को पकाएँ, पकाकर उसको स्टील बनाएँ, फौलाद बनाएँ और फौलाद के बाद में लौह भस्म बनाएँ । इस तरह एक से बढ़कर एक कीमती चीज बनते चले जाएँ । कीमती से कीमती बनाने की यह विशिष्टता तप की आग में ही होती है ।

Source: Pragya Abhiyan

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